भारत का वो गांव जहां 750 सालों से रह रहे हैं Africa मूल के लोग, ‘मिनी Africa’ के नाम से है मशहूर

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गुजरात में Africa मूल का सिद्धी जनजाति: भारत में एक अनूठी समुदाय

भारत एक ऐसा देश है जहां विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग रहते हैं। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी समेत कई अन्य धर्मों के अनुयाय यहां अपने विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन के तहत रहते हैं। इन विभाजनों के साथ-साथ, वह अपनी अपनी भाषा, बोली, पहनावे और रीति-रिवाज के माध्यम से अपनी पहचान को साबित करते हैं।

अफ्रीका का वो राजा जो हर साल करता है एक कुंवारी लड़की से शादी – News18 हिंदीलेकिन, इसके अलावा बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत में पिछले 750 सालों से Africa  के हज़ारों लोग रह रहे हैं। यह लोग गुजरात में वास करने वाले अफ़्रीकी मूल की सिद्धी समुदाय हैं। आज देश में यह सिद्धी समुदाय के लोगों की कुल जनसंख्या लगभग 50 हज़ार के करीब है। इन लोगों की आबादी अधिकतर गुजरात के जंबूर गांव में पाई जाती है, और इस कारण इस गांव को “मिनी Africa” के नाम से भी जाना जाता है।

मिनी Africa: भारत में एक अद्वितीय समुदाय

गुजरात के जंबूर गांव को पिछले 200 सालों से अफ़्रीकी मूल के हज़ारों लोगों ने अपना घर बनाया है। यह गांव आजकल ‘मिनी Africa’ के नाम से प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां एक अनोखा समुदाय बसा हुआ है। सिद्धी जनजाति के लोग इस गांव में निवास करते हैं और वह इस्लाम धर्म का पालन करते हैं। हालांकि, कुछ हिंदू और ईसाई धर्म के अनुयाय भी अब इस समुदाय में शामिल हो गए हैं। सिद्धी जनजाति के लोग मूल रूप से अफ़्रीका के बंतु समुदाय से जुड़े हैं और इसके अलावा दक्षिण-पूर्वी अफ़्रीका से कई हब्शी यहां आए हैं, इसलिए उन्हें ‘हब्शी’ भी कहा जाता है।

Mini Africa Is In India Thousands Of People Of African Origin Live Here Even Today | भारत में यहां है मिनी अफ्रीका, हर तरफ नजर आते हैं अफ्रीकी मूल के हजारों लोग!

मिनी Africa का इतिहास

मिनी Africa गांव की स्थापना का इतिहास बहुत पुराना है। इस समुदाय के पूर्वज गुजरात के पासीने क्षेत्रों से आए थे और यहां बस गए। वह भारतीय संस्कृति में शामिल हो गए और अपनी ज़ुबान, खाद्य, संगीत, और परंपराओं को बनाए रखा। अपने असाधारण रंगीन साड़ियों और पहनावों के कारण, वह लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं।

इस समुदाय के लोग मुख्य रूप से मत्स्यांगन प्रदेश के मानसी जिले में आबाद हैं, जो गुजरात के उत्तरी भाग में स्थित है। मिनी अफ़्रीकी गांव का वातावरण व्यापक और सामरिक खेलों से परिपूर्ण है। खेल और संगीत इस समुदाय के लोगों की प्रमुख प्रतिभाएं हैं।

Ignored and Forgotten, Humans of Gujarat's 'Mini Africa'

सिद्धी जनजाति का इतिहास बहुत रोचक है। इनकी आने की कहानी भारत में एक लंबे समय से जुड़ी हुई है। इतिहासकारों के अनुसार, लगभग 750 साल पहले पुर्तगाली इस समुदाय को गुलाम बनाकर भारत में लाए थे। इसके साथ ही, अरब शेख भी अपने यात्रा के दौरान इन्हें अपने साथ ले आए थे और अपने वापस जाने पर इन्हें गुजरात के राजाओं को सौंप दिया गया था। इससे प्रारम्भ से ही सिद्धी जनजाति के लोग गुजरात में निवास कर रहे थे।

आज तक नही अपना पाया भारत

भारत ने पूरी तरह से सिद्धी जनजाति को अपना नागरिक नहीं माना है, यह एक दुःखद तथ्य है। इन्हें अक्सर सामाजिक और आर्थिक विभाजन का सामना करना पड़ता है और वह अधिकांशतः नौकरीयों में मजबूर रहते हैं। इसके बावजूद, सिद्धी जनजाति के लोग अपनी संस्कृति से प्रेम करते हैं और अपने समुदाय की आर्थिक सहायता करने का प्रयास करते हैं।

Inside Jambur: Africa in Gujarat | Condé Nast Traveller India

मिनी Africa गांव का उद्घाटन व्यापक और सामरिक खेलों के साथ हुआ। इस गांव का विकास इतना हुआ है कि यह आजकल देश और विदेशी पर्यटकों के लिए एक मशहूर पर्यटन स्थल बन गया है।

इतिहास का दूसरा पन्ना

सिद्धी जनजाति के इन लोगों को भारत लाने का श्रेय जूनागढ़ के नवाब को भी जाता है। इस विषय में एक प्रसिद्ध लोककथा प्रचलित है। कहा जाता है कि जूनागढ़ के नवाब ने अपनी यात्रा के दौरान Africa में एक अद्वितीय अफ़्रीकी महिला से प्यार किया और विवाह कर लिया। बाद में, जब यह महिला भारत आई, तो उन्होंने अपने साथ लगभग 100 गुलामों को भी लाई।

Inside Jambur: Africa in Gujarat | Condé Nast Traveller India

इस कथा के अनुसार, जूनागढ़ के नवाब ने सिद्धी जनजाति को अपने राज्य में स्वागत किया और उन्हें अपने आदर्शों, संस्कृति और धर्म का सम्मान दिया। फिर सिद्धी जनजाति के लोग गुजरात में आबाद होने लगे और वहां अपने समुदाय का विकास करने में जुटे।

और कहां हुआ सिद्धि समुदाय का बसेरा

गुजरात के जूनागढ़ को ‘सिद्धी समुदाय’ का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस समुदाय के लोग आज जूनागढ़ के अलावा गिर सोमनाथ, अहमदाबाद, ओखा, वड़ोदरा, राजकोट और भावनगर में भी बस गए हैं। इस समुदाय के लोग भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी रहते हैं। इन्हें सिद्धी बादशाह’ या ‘सिद्धी मुसलमान’ भी कहा जाता है।

African Connection - Frontline

करना पड़ रहा है भेद भाव का सामना

सिद्धी समुदाय के लोगों को कई दशकों से भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। वे ख़फ़ा हैं कि उनका विकास उतना नहीं हुआ है जितना होना चाहिए था। इतनी लंबी आज़ादी के बावजूद भी उनके अपने घरों के दस्तावेज़ उनके नाम पर नहीं हैं। जंबूर गांव में स्थित सिद्धी समुदाय के मिट्टी के पुराने घर आज भी उनके पिछड़ेपन की कहानी कहते हैं। इनके पास सड़क, बिजली और पानी है, लेकिन रोज़गार के लिए वह आज भी मज़दूरी पर निर्भर रहते हैं।

मेहनत-मज़दूरी करके अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले सिद्धी समुदाय के लोग कई पीढ़ियों से गुज़र कर जंगल के पास स्थित इलाक़े में रह रहे हैं। वह अपने परंपरागत जीवनशैली को बरकरार रखने के लिए आपसी सहायता करते हैं और एक दूसरे का समर्थन करते हैं। इसके बावजूद, उन्हें सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है और उन्हें अपने अधिकारों और सुविधाओं की अभाव से लड़ना पड़ता है।

A Community Forgotten And Marginalised: The Siddis Of Gujarat

आज गुजरात का जंबूर गांव पर्यटकों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय तौर पर ये एक अनोखी टूरिस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर प्रसिद्ध है। अगर आप कभी जंबूर गांव जाएं, तो आप समझ जायेंगे कि ये लोग कितने अलग और अनोखे हैं। इन लोगों की ख़ासियत है कि ये किसी अन्य धर्म में शादी नहीं करते और गुजराती में बात करते हैं, न कि अफ़्रीकी में।

भारतीय समाज में घुले मिले सिद्धी जनजाति: एक अनूठा वंश

भारत के कई हिस्सों में बसे हुए हैं ‘सिद्धी जनजाति’ के Africa वाले लोग। ये लोग सिर्फ़ गुजरात में ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों में भी निवास करते हैं। गोवा और कर्नाटक में रहने वाले ‘सिद्धी जनजाति’ के लोग कोणकनी भाषा में बोलते हैं। हैदराबाद में भी कई सिद्धी समुदाय हैं। इन लोगों में शादी करने वाले अन्य धर्म के लोगों की संख्या काफ़ी कम है। इसी कारण इन्हें आज भी अफ़्रीकी लगने का अंदाज़ा होता है।

Be On The Road | Live your Travel Dream!: Siddi Tribe: The Africans of India

गुजरात के सिद्धी जनजाति: अनूठी पहचान

ये लोग अपने अफ़्रीकी मूल के कारण अपने संस्कारों को याद रखते हैं और अपनी परंपराओं का पालन करते हैं। वे भारतीय और गुजराती संस्कृति का भी सम्मान करते हैं। हालांकि, ख़ुशी के मौके पर वह अपनी अफ़्रीकी कला और संस्कृति को अपनाते हैं। वह ख़ुशी के अवसर पर अफ़्रीकी नृत्य करते हैं, जो उनके जीविका का एक महत्वपूर्ण साधन भी है। और खान-पान की बात करते समय वह अपने अफ़्रीकी और गुजराती भोजन को ही महत्व देते हैं।

In Photos: Lost Legacy of Gujarat's African-Origin Siddi Tribe

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