Kargil war एक ऐतिहासिक घटना थी जो 1999 मई-जुलाई के महीनों में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी। यह युद्ध जम्मू और कश्मीर के Kargil सेक्टर में स्थित Kargil और लद्दाख क्षेत्रों में लड़ा गया था। यह युद्ध भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण और गौरवशाली क्षण था, जहां भारतीय सैनिकों ने देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर की थी।
यह युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण सीमा क्षेत्रों में हुए सैन्य टकरावों के कारण हुआ था। पाकिस्तानी सेना की गड़बड़ी को देखते हुए भारतीय सेना ने इसे एक सशस्त्र मुठभेड़ के रूप में देखा और इसका सामना करने का निर्णय लिया। यह युद्ध आधुनिक युद्ध तकनीक का अपनान करने वाला युद्ध रहा, जिसमें हेलीकॉप्टर, वायुसेना, और परमाणु ऊर्जा का उपयोग किया गया।
भारतीय सेना के जवानों ने बड़ी हिम्मत और पराक्रम दिखाकर Kargil में आतंकवादी तत्वों को पराजित किया। वे कठिन और ख़तरनाक परिस्थितियों में भी अपने जीवनों की परवाह किए बिना अपने राष्ट्रीय ध्वज को गर्व से लहराते रहे। इस युद्ध में बहुत सारे वीर सैनिक अपनी जान गंवा चुके थे, और उनके परिवारों ने अपनी ख़ुशीयों के बजाय दुःख और वीरों की शहादत का दर्द सहा।
यह युद्ध भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण पाठशाला साबित हुआ, जिसमें हमने साहस, धैर्य, और समर्पण की मिसालें देखीं। इसके द्वारा हमने दुश्मन को साबित किया कि हम अपनी स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह युद्ध हमारे सैनिकों की वीरता, बलिदान, और देशभक्ति की कहानी थी, जो हमें हमेशा गर्व महसूस कराती है।
आज भी, उन सैनिकों की याद हमारे दिलों में है और हम उनकी शहादत को सलामी देते हैं। कारगिल युद्ध के निशान आज भी हमारे देश की भूमि पर मौजूद हैं और हमें याद दिलाते हैं कि हमें अपने सुरक्षा और अखंडता की रक्षा करनी है। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारी स्वतंत्रता और शांति की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहना होगा और हमेशा तैयार रहना होगा अपने देश की सेना का साथ देने के लिए।
भारतीय सेना के वीर सैनिकों की शहादत हमारे देश के लिए अप्रतिम बलिदान है। उन्होंने अपने प्राणों की क़ुर्बानी देकर हमारी सुरक्षा और आज़ादी को संभाला है। इस लेख में, हम आपके साथ कारगिल युद्ध के शहीद सैनिकों की कहानियाँ साझा कर रहे हैं। ये सच्ची कहानियाँ हैं, जिन्हें उनके अपने माता-पिता या परिवार के सदस्यों ने हमारे साथ साझा की हैं। इन कथाओं को सुनकर आपका सीना गर्व से फूल जाएगा और आंखें नम हो जाएंगी।ये कहानियाँ हमें बताती हैं कि शहीद सैनिकों के परिवारों ने कैसे अपने बेटों की खोयी हुई आत्मा को गर्व के साथ याद किया है। इन कहानियों में आपको एक-एक करके सैनिक की वीरता, उनके साहस, और देशभक्ति की गाथा मिलेगी। आप जानेंगे कि वे कैसे सामरिक और मानसिक जटिलताओं का सामना करते हुए भी अपनी कर्तव्य निष्ठा और विश्वास के साथ कार्यरत रहे।
Kargil war के दौरान, कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपनी अद्वितीय वीरता और बहादुरी के कारण पूरे देश में मशहूरी प्राप्त की। उन्होंने दुश्मन के खिलाफ अद्वितीय साहस और सामरिक योगदान का परिचय दिया। उनकी निडरता और लड़ाई के दौरान दिखाए गए शौर्य के लिए उन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से पुकारा जाता था।
कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता और निडरता ने उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सेना में सर्वोच्च योगदान के लिए प्रदान किया जाता है। उन्होंने Kargil war भूमि पर अपने प्राणों की क़ुर्बानी दी और देश की रक्षा के लिए संघर्ष किया।
वापस लौटने के पश्चात, कैप्टन बत्रा अपनी प्रेमिका डिंपल से विवाह करने की योजना बना रहे थे। इससे प्रकट होता है कि उनके लिए प्रेम और विश्राम भी महत्त्वपूर्ण थे।
एक इंटरव्यू में डिंपल ने Quint को बताया कि उन्होंने अपने प्यार को उस व्यक्ति के लिए प्रकट किया है जिसने उनकी ज़िंदगी को पूरा किया है।
पिछले 17 सालों में एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ जब मैंने ख़ुद को आपसे अलग महसूस किया हो. ऐसा लगता है जैसे आप किसी पोस्टिंग पर दूर हैं. मुझे बहुत गर्व महसूस होता है जब लोग आपकी उपलब्धियों के बारे में बात करते हैं पर उसके साथ-साथ दिल के कोने में कुछ अफ़सोस भी है. आपको यहां होना चाहिए था, अपने बहादुरी के क़िस्से साझा करते हुए, सुनते हुए कि कैसे आप आज के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं. मुझे अपने दिल में पता है कि हम फिर से मिलने जा रहे हैं, बस कुछ ही समय की बात है।
कैप्टन अनुज नैय्यर, जो केवल 24 साल के थे, ने अपने जीवन की उच्चतम क़ुर्बानी देते हुए देश के लिए लड़ाई दी। उन्होंने अपने मिशन की सफलता के कारण टाइगर हिल पर कब्ज़ा कर लिया था। उनकी वीरता और साहस ने उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन अनुज नैय्यर के पिता, प्रोफ़ेसर नैय्यर ने कुछ साल पहले Deccan Herald के साथ एक इंटरव्यू में अपने बेटे की यादगार कहानी साझा की थी। इसमें वे उनकी वीरता, निडरता और देशभक्ति के बारे में बता रहे थे। यह क़िस्सा हमें यह याद दिलाता है कि युद्ध के वीरों की अद्वितीयता और समर्पण का महत्व हमारी सोच और दृष्टिकोण को बदल सकता है।
जब अनुज 10th क्लास में था तो वो एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हुआ, जहां उसके पैर की मांसपेशियां घुटने से लेकर पैर की उंगली तक पूरी तरह से फट गई थीं। 16 साल की उम्र में बिना एनेस्थीसिया के उसे 22 टांके लगे ।उन्होंने मुझे बताया कि दर्द पैर में नहीं दिमाग़ में होता है।
Kargil War के दौरान, मात्र 22 साल की उम्र में, कैप्टन विजयंत थापर ने अपने प्राणों की आहुति देते हुए वीरगति प्राप्त की। विजयंत थापर की एक अद्वितीय परंपरा है, जहां उनके पिता, विजेंद्र थापर (सेवानिवृत्त कर्नल) और उनके पिताजी ने भी भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दी हैं। विजयंत थापर ने इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपनी शौर्यगाथा लिखी और पूरे देश को गर्वमय बनाया।
2016 में, उनके पिता विजेंद्र थापर ने अपनी अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए पहाड़ की चट्टान पर बैठने की कठिनाई को झेलते हुए 16,000 फीट की ऊँचाई पर पहुंचा। वहां पर, उनका बेटा पाकिस्तानी आक्रमणकारियों के खिलाफ निडरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गया था। उनके पिता को उनके बेटे पर गर्व है और वे मानते हैं कि उनका बेटा बहुतों के लिए प्रेरणा का स्रोत होगा।
विजयंत जैसे युवकों ने वही किया जिसकी राष्ट्र उनसे अपेक्षा करता था, जो उनका कर्तव्य था। दरअसल, Kargil का युद्ध भारतीय राष्ट्र में सर्वश्रेष्ठ है, जिसमें कैप्टन विजयंत जैसे कई बहादुर जवान बहादुरी से लड़े और भारत माता की पवित्रता को बरक़रार रखा। उसे सम्मानपूर्वक वापस लेकर आए। देशवासियों ने बहादुर दिलों के लिए अपने प्यार और समर्थन की बौछार की। बेशक़, उन्होंने जो किया है, उस पर हम गर्व महसूस करते हैं, लेकिन एक युवा बेटे को खोना दर्दनाक है और हम अपने जीवन के हर दिन इससे गुज़रते हैं।
मेजर पद्मपाणि आचार्य ने अपनी शहादत के समय अपनी पत्नी के गर्भ में ही होते हुए वीरता की अद्वितीय गाथा रच दी। उन्होंने अंतिम बार 21 जून को अपने माता-पिता से बात की थी, जो उनका जन्मदिन था। उस दिन किसी ने नहीं जाना था कि वह अपने पुत्र की आवाज़ सुन रहे हैं और यह उनकी आख़िरी मुलाक़ात थी। मेजर पद्मपाणि आचार्य, जो राजपुताना राइफ़ल्स में सेवा कर रहे थे, को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
विमला आचार्य, उनकी मां, प्यार से अपने बेटे को याद करती हैं:
एक मां के रूप में, मैं निश्चित रूप से दुखी और आहत हूं लेकिन एक देशभक्त के रूप में, मुझे अपने बेटे पर गर्व है.
लांस नायक निर्मल सिंह: पत्नी की आशा और समर्पण”
लांस नायक निर्मल सिंह के पास आज केवल अपने पति की सेना की वर्दी ही बची है। जसविंदर कौर, लांस नायक निर्मल सिंह की पत्नी, केवल 5 साल हो गए थे जब उनके पति टाइगर हिल पर शहीद हो गए थे। उनका बेटा उस समय सिर्फ़ 3 साल का था।
जसविंदर कौर आज भी अपने दिवंगत पति की वर्दी से उम्मीद करती हैं। वह उनके साथी और समर्पित हैं, जो देश की सेना में उनके पति के माध्यम से जीवनभर की सेवा करते रहेंगे।
ये (उनकी वर्दी) उनका सम्मान था और अब मेरी निरंतर साथी है. मैं इसे नियमित रूप से धोती और इस्त्री करती हूं और जब भी मैं कहीं उलझती हूं या कोई दिशा लेना चाहती हूं तो मैं उनकी वर्दी को अपने हाथों में पकड़ लेती हूं। एक सच्चे सैनिक की वर्दी मेरे लिए एक लाइटहाउस की तरह होती है। मैं अपने बेटे को एक सच्चे सैनिक का बेटा बनाने की राह पर चल पड़ी हूं।
मेजर मरियप्पन सरवनन, Kargil War के दौरान बटालिक की चोटियों की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। उनका शरीर एक महीने से अधिक समय तक नो मैन्स लैंड में बर्फ़ में फंसा रहा। हर बार जब भारतीय सैनिकों ने उसके शरीर को बरामद करने की कोशिश की, तो पाकिस्तानियों ने गोलियां चला दीं। जब पाकिस्तानियों ने उनके शरीर को हड़पना चाहा, तो भारतीयों ने गोलियां चला दीं। इनकी मृत्यु के 41 दिन बाद आख़िरकार उनका शव बरामद किया गया। उनकी मां, अमितावल्ली मरियप्पन, याद करती हैं कि वह अपने बेटे से आख़िरी बार कब मिली थीं।
वो Kargil युद्ध से पहले घर आया था उसे एक दोस्त की शादी में शामिल होना था और डेढ़ महीने हमारे साथ रहा. आख़िरी बार उसने हमें ये बताने के लिए फ़ोन किया था कि उनकी यूनिट शिफ़्ट हो रही है. उसने हमें कभी नहीं बताया कि वो कारगिल जा रहा है, हमने सोचा कि ये नियमित पोस्टिंग में से एक है ।
मेजर राजेश सिंह अधिकारी की शादी को अभी 10 महीने ही हुए थे जब उन्हें अपने देश की सेवा के लिए Kargil भेजा गया था। उन्होंने इस अवसर पर बहुत गर्व महसूस किया। अपनी पत्नी को लिखे आख़िरी पत्रों में से एक में उन्होंने कहा था कि उन्हें यक़ीन नहीं है कि वो वापस आने वाले हैं। उस समय उनकी पत्नी, किरण, प्रेगनेंट थीं। इस पत्र को उन्होंने तब लिखा था जब वो अपने मिशन में सफल हुए थे। इनके पत्र के जवाब में इनकी पत्नी ने भी एक पत्र लिखा था, जो वो पढ़ ही नहीं पाए, उसमें लिखा था:
इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मैं एक बच्ची को जन्म देती हूं या एक लड़के को, अगर आप वापस आते हैं तो मुझे ख़ुशी होगी और अगर आप नहीं आते हैं तो मुझे शहीद की पत्नी होने पर गर्व होगा, लेकिन एक बात मैं आपसे वादा करना चाहती हूं. इस ख़त के ज़रिये मैं आपसे एक वादा करती हूं कि मैं अपने बच्चे को न केवल Kargil दिखाऊंगी बल्कि उसे आपकी तरह एक सोल्जर बनाऊंगी।
जय हिन्द!
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