Parliament house, जिसे संसद मार्ग पर स्थित किया गया है, नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से 750 मीटर की दूरी पर स्थित है। यह भवन सेंट्रल विस्टा को पार करता है और इंडिया गेट, युद्ध स्मारक, प्रधानमंत्री कार्यालय और भारत सरकार की अन्य प्रशासनिक इकाइयों से घिरा हुआ है। इसके भीतर स्थित हैं लोक सभा और राज्य सभा के सदन, जो भारत की द्विसदनीय संसद में क्रमशः निचले और उच्च सदनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
Parliament house के पूर्वावस्था में, जब इसका निर्माण नहीं हुआ था, सांसदों की बैठकें और सदनें अलग-अलग स्थानों पर होती थीं। पहली संसदीय बैठक 9 दिसंबर, 1946 को कार्यशाला राष्ट्रपति भवन, राजघाट के पास ही हुई। बाद में, संसद के लिए स्थायी सदन के रूप में नई दिल्ली के साउथ ब्लॉक में एक भवन का निर्माण किया गया, जो बाद में संसद भवन के रूप में विख्यात हुआ। आज, Parliament house दिल्ली की संसदीय गली में स्थित है और लोकसभा और राज्यसभा को अपने अधिकारिक सदनों में मेजबानी करता है।
आज़ादी से पहले की यह बात है, जब ब्रिटिश सरकार भारत पर शासन कर रही थी। इस युग में, एक लोकसभा की बजाय इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल होती थी, जिसे बड़े और महत्वपूर्ण फैसलों का अधिकार होता था। इस दौरान, लगभग 1911 के आसपास देश की राजधानी कोलकाता से बदलकर दिल्ली में स्थानांतरित की गई थी और एक नया शहर निर्मित किया जा रहा था। नए शहर के साथ ही, 1919 में नई काउंसिल की स्थापना हुई, जिसे नई काउंसिल के रूप में जाना जाता है। इस काउंसिल में, सदस्यों की संख्या 145 थी।
1919 में नई काउंसिल की स्थापना हो गई थी, लेकिन उस समय केंद्रीय असेंबली की बैठक के लिए कोई आवास नहीं था। इस परिस्थिति में, सदस्यों की सहमति और तत्कालीन वायसराय की अनुमति के साथ पहली बैठक वाइसरीगल लॉज में हुई, जो उस समय वायसराय हाउस के रूप में जाना जाता था।
राजधानी भी कोलकाता से दिल्ली में स्थानांतरित की गई थी, इसलिए सभी प्रशासनिक बैठकें और फ़ैसले भी दिल्ली में ही होने लगे थे। इस दौरान ही इसी बैठक में केंद्रीय असेंबली के सदस्यों ने नए प्रशासनिक भवन की प्रस्तावना की। इसी बैठक के बाद से ही राष्ट्रपति भवन, संसद भवन सहित अन्य प्रशासनिक इमारतें निर्माण की शुरुआत हुई।
यह एक ऐसा मुद्दा था जिसने अंग्रेज़ों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली काउंसिल के लिए एक अलग जगह की आवश्यकता है, जहां उनके सदस्य बैठ सकें और बैठकें हो सकें। इसलिए दिल्ली में प्रशासनिक भवन बनाने का प्रस्ताव रखा गया, और इसका नक्शा ब्रिटिश आर्किटेक्ट एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स और सर हर्बर्ट बेकर ने तैयार किया।
इसके बाद 1921 में इसका शिलान्यास ड्यूक ऑफ़ कनॉट ने किया, और इसका निर्माण 1927 के बीच पूरा हुआ। नई संसद को जनवरी 1927 में शाही विधान परिषद की सीट के रूप में खोला गया था। इसका उद्घाटन वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया था। इस तरह से देश को एक नई केंद्रीय असेंबली मिली, जिसे आज संसद भवन के नाम से जाना जाता है।
वाइसरीगल लॉज दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो 1902 में बनाई गई थी। लुटियंस दिल्ली की सरंचना के दौरान, इसे बसाया गया था और यह वायसराय की आवासीय स्थान और सत्ता का मुख्य केंद्र भी था।
यह इमारत दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. वाइस चांसलर और रजिस्ट्रार के ऑफ़िस को मुख्यतः आवास प्रदान करती है। इसके चारों ओर वृक्षों से घिरे होने के कारण, यह बहुत सुंदर दिखती है। इसमें एक मंजिला लॉज और अन्य वैग्याप्ति संरचनाएं भी हैं।1933 में रायसीना हिल्स को वायसराय हाउस बनाया गया। इसके बाद, वायसरीगल लॉज को दिल्ली विश्वविद्यालय को सौंप दिया गया।
वायसराय हाउस की संरचना बेहद विशेष ढंग से की गई है। इसमें चारों ओर बगीचा और गलियारा हैं। सभी कमरों के सामने वेटिंग रूम बनाया गया है। पहले इसे केंद्रीय असेंबली के रूप में इस्तेमाल किया जाता था और इन्हीं कमरों में बैठकें होती थीं, लेकिन अब यहां विश्वविद्यालय की शैक्षिक और कार्यकारी परिषद की बैठकें होती हैं।
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